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टेक्नीशियन कभी बेरोजगार नहीं होते, लाखों रुपये तक कमाते हैं प्रतिमाह

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 आदरणीय पाठकगण, आज के इस ब्लॉग से आपको एक बात समझ आयेगी की हुनर क्यों आवश्यक है? तथाकथित बेरोजगारी जो सर चढ़ के बोल रही है वह टेक्नीशियन से दूरी बना कर रहती है। क्योंकि टेक्नीशियन बेरोजगारी को अपने पास आने से हुनर के बदौलत रोक देते हैं।  आज हमारी टीम एक मोटरसाइकिल मिस्त्री के दुकान / वर्कशॉप के पास से गुजरी तो हमलोगों ने वहाँ देखा  फुटपाथ के निकट दुकान (करीब 50 वर्ग फीट में) कार्यरत कामगार 5 ( एक टेक्नीशियन 4 प्रशिक्षु) कार्य क्षमता (10 मोटरसाइकिल सर्विसिंग एवं 20 से ज्यादा छोटे कार्य) लागत पूंजी - करीब 50 हजार प्रति दिन की आमदनी - ₹ 5000 +  कार्य का समय - 7 बजे सुबह से 7 बजे संध्या (अल्पाहार अवकाश कार्य के अनुसार) प्रशिक्षित टेक्नीशियन के पास कोई व्यवसायिक डिक्री नहीं पर कार्यकुशलता में निपुण 15 + बरसों से कार्यरत उपलब्धि प्रतिदिन अपने घर से दुकान पर आना - जाना एवं घर परिवार के लोगों के साथ रहना  आपके लिये अब आप यह समझिए कि प्रतिभा पलायन को रोकने का यह उपाय कैसा है?

What is unemployment?

Dear Readers,  Unemployment is a situation in which individuals who are willing and able to work are unable to find suitable employment opportunities. It is typically measured as a percentage of the labor force, and it is an important economic and social indicator. There are several types of unemployment: Frictional Unemployment: This type of unemployment occurs when individuals are temporarily between jobs or are entering the workforce for the first time. It is often considered natural and may be associated with the time it takes for job seekers to find employment that matches their skills and preferences. Structural Unemployment: Structural unemployment happens when there is a mismatch between the skills and qualifications of job seekers and the requirements of available jobs. This can be due to changes in the economy, technological advancements, or shifts in industries. Cyclical Unemployment: Cyclical unemployment is tied to the economic business cycle. During economic downturns

बरोजगारी क्या है ?

आदरणीय पाठकगण,  बरोजगारी एक सामाजिक समस्या है । जो उन लोगों को व्यक्त करती है जो नौकरी या रोजगार की तलाश में होते हैं,  लेकिन उन्हें कोई उपयुक्त काम नहीं मिलता। इससे उनका आर्थिक, सामाजिक और मानसिक दुखदायक प्रभाव पड़ता है। यह एक व्यक्ति के स्वाभाविक समय का व्यर्थ होना होता है, जो फिर उसकी आत्मसम्मान और समाज में स्थानांतरण को प्रभावित कर सकता है। बेरोजगारी, आर्थिक शास्त्रों और रोजगार संबंधित समाजशास्त्रियों के द्वारा परिभाषित किया जाता है, जो समय के साथ बदल सकती है, लेकिन आमतौर पर यह तब होती है जब लोग काम ढूँढने में असमर्थ होते हैं और वे उपयुक्त रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यह आमतौर पर किसी क्षेत्र, क्षेत्र या देश के आर्थिक परियोजनाओं की कमी के साथ आती है, जिससे लोग वित्तीय स्वावलंबन की कमी महसूस करते हैं। बेरोजगारी के कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं, जैसे कि आर्थिक मंदी, तकनीकी प्रगति, कामकाजी प्रशासन, जनसंख्या वृद्धि, शैक्षिक असमानता, उद्योगों में तकनीकी बदलाव, और अन्य आर्थिक और सामाजिक कारण। बेरोजगारी की स्थिति समाज में असमानता, आर्थिक संकट, और सामाजिक समस्याओं का कारण बन सकती है। सरका